Tuesday, June 12, 2012

जान जाएगी, जान जाओगे




कब यह सोचा था यूँ सतायोगे
अलविदा ! और भूल जाओगे


हर सू रंगीं बहार राइज़ है
आ गये फूल तुम कब आयोगे


कैसे जीते हैं लोग मर कर भी
जान जाएगी, जान जाओगे


तुम भी, सोचा न था कभी होगा
यूँ मेरा ज़ब्त आज़माओगे 


शाम-ए-जीस्त अब , कि तुम तो कहते थे 
शाम ढलते ही लौट आओगे 


कैसे जीता हूँ देखने के लिए
मर भी जाऊंगा क्या तुम आओगे ?!!


जानते, तुम तलक को हार चुका
इस से आगे भी कुछ हराओगे 


यही एजाज़ -ए-राह-ए - फुरकत बस
रो ही दूंगा न गर रुलाओगे 


दिन नहीं दूर कि शिकवा होगा
मेरा पूछोगे और न पाओगे 


अब कि हारा तो तेरी जीत नहीं 
मैं न कहता था हार जाओगे 


चले जाओ कि अब कि जाते हो 
याद आओगे, बहुत आओगे !!!

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