Tuesday, September 4, 2012

दुआ-ए-मुल्तमस

दुआ-ए-मुल्तमस
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चलो यूं करते हैं
कि रात की तन्हाइयों को
लबों की ख़ामोशियों में
बांध लेते हैं ,
और बङा लेते हैं कुछ
तारीकीयों को
तेरी ज़ुल्फ़-ए-सियाह को तान कर,
और
सितारों से गुज़ारिश करते हैं कि
भींच लें अपनी आखें
कुछ देर के लिए-
चलो
चांद को बुझा लेते हैं----------


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