कुछ तो जुनूँ में काट
ली कुछ इज़्तराब में
हम ने तो उम्र कर ली है डूबे यूँ ख्वाब में
मालूम खूब उस का हरिक लहजा-ए- चलन
"मैं जानता हूँ वो जो लिखेंगे जवाब में "
हर हिर्स-ओ-हव्स ग़ायब लेकिन थी यह रही
इक तेरी जुस्तजू दिल-ए-खाना-खराब में
कुछ सह्र पानियों में कि अंजाम-बर हुआ
हर आशिकी
का क़िस्सा ही आखिर चनाब में
तुझ से अलग हो साहिब बू को मजाल क्या
ग़ुल को भी हम ने जाना तो रंग-ए-जनाब में
वह ही सरूर-ए-वजदां है मस्ती भी एक ही
चश्म-ए-ख़ूमार में जो न क्या है शराब में
यूँ ही नहीं है नग़्मः-ए-बुल्बुल जनून-पेशा
ख़ून-ए-जिगर भी इसका कहीं इस हिसाब में
khayaalaat ka
ReplyDeleteachhaa izhaar hai ... !
shukriya,mohtaram janaab daanish saahib
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