रात कटी गिन तारा तारा
बर्हम दिल का आलम सारा
तेज़ लिये दन्दान-ए-इश्तहा
मूँह खोले बैठा अँधिआरा
दर्द इश्क़ का मीठा मीठा
पर यादों का पानी ख़ारा
साकित अहद-ओ-तहय्या-ए-ज़ीस्त
तेज़ बहाव वक़्त का धारा
अक़्स तेरा साबित है बस इक
आइना-ए-दिल पारा पारा
शोर-ए-बग़ावत आह-ओ-फ़ुगानी
अश्क़ हरासाँ आँख का नारा
तूफ़ानों के मन्ज़र-नामे
खसता-कश्ती दूर किनारा
ज़ख़्मों का दर्मां हो जाए
तलब रही और ना ही चारा
दुनिया फ़ुज़ला-ओ-फ़राबानी
तू जो नहीं कुछ नहीं हमारा
पहलू बैठ ख़ून-ओ-ख़ूँ रोए
और करे का दिल बेचारा
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