Saturday, January 14, 2012

खाब-ए-रंगीन





रात
नींद में बैठ कर मेरी
सपना एक बुनती रही
चाँदनी क़ी धागों पर
खुश्बू के फूल टांक
हवाओं क़ी रागिनी के सुर
गुनगुनाती धारीयों में बाँधती

और फिर ये रंगीन चादर
उजले ख्वाब क़ी
सब्ज़ वादीओं में फहराती
रोशनी क़ी राहों में फैल गई
कोई तो चलेगा इस पर भी
ताबीर का दिया लेकर

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