चश्म-ए-मैगूना जाम किया
फिर इश्क किया इक काम किया
फिर हुस्न की धूप में दिल सेका
सिआह ज़ुल्फ तले आराम किया
इक ग़ज़ल बहम इक तलब-ए-क़लम
जो भी था उसी के नाम किया
तेरे नाम से जो भी ताना तुर्श
था अपने लिये दुशनाम किया
हुस्न-ए-जानां धुन में निकले
है सजदा हर हर गाम किया
कब मैं ने तुझे न याद किया
हर सहर किया हर शाम किया
कोई ख़ार-ए-जिगर, इक मस्त नज़र
जो तुम ने दिया परवान किया
गुलशन रन्ग-गाह हर बाद-ए-सबा
माह-ओ-मिहर तेरे हमनाम किया
चश्म-ए-साक़ी यह शेवा-ए-नज़र
है वज़द किया रिंदान किया
यादों के मुअत्तर फूलों से
है दामन-ए-दिल गुन्जान किया
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